"ग़ज़ल"
मेरी ऑंखों की नमी छुपाने के लिए है!
मेरे होंटों की हॅंसी दिखाने के लिए है!!
ऑंखों में कभी ख़्वाब को बसने न देना!
ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए है!!
कहते हैं किसे प्यार मुझ को क्या पता!
मोहब्बत की ख़ुशी तो ज़माने के लिए है!!
मुमकिन है ये धड़कनें तेरे काम आ सकें!
मेरी जान तो तुझ पे लुटाने के लिए है!!
'परवेज़' जिसे लोगों ने समझा मेरा सेहरा!
वो तो मेरी मय्यत पे चढ़ाने के लिए है!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad