सड़क के किनारे घने छायादार पेड़।
निःस्वार्थ सेवा के लिए हमे घेरे खड़े।।
खेत की पगडंडी भी गाँव ले जा रही।
खलिहान में करब के कई गटठर पड़े।।
धीमी धीमी हवा बह रही खुश्की लिए।
होली आने से पहले 'उपदेश' धूल उड़े।।
मन में योजनाएँ बन रही रंग खेलने की।
चंचल भाभियों के हाथो से गुलाल उड़े।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद