मुझे उससे प्रेम है,
उसे मुझसे नहीं,
फिर भी,
मुझे उससे प्रेम है,
और यह बेईमानी है तो,
बेईमानी सही।
उसके चाहने की भी चाह थी,
उसकी चाह नहीं है,
फिर भी
उसके चाहने की चाह है,
और यह बेईमानी है तो,
बेईमानी सही।
यूँ तो प्रेम सीमित नहीं चाह तक,
उसको पाना चाहा,
उसकी अनुमति नहीं है,
फिर भी
उसको पाना चाहता हूँ,
और यह बेईमानी है तो,
बेईमानी सही।
----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'
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