खिचड़ी- डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
बल्ला घूमते ही,
बांल विकेट में चली गई।
भ्रष्टाचारियों की खिचड़ी,
भगोने में ही जल गई।
बना रहे थे भ्रष्टाचार की रेल,
पकड़ कर एक दूसरे का हाथ,
जा रहे हैं,जेल।
कर रहे थे कागजों में हेरा फेरी,
अब भाग रहे हैं कहते हुए,
कोई गलती नहीं मेरी।
खुल रहे हैं, बड़े-बड़े बक्से उनके भ्रष्टाचार के,
लगाते थे, आग जिस माचिस से,
आज हाथ जल गए हैं, उसी आग से।