ओ घर के लोगो! जो सुन रहे, और जो चुप बैठे हैं,
हवा जहरीली, जल सूखा, यह सच क्यों नहीं कहते हैं?
जब बच्चा खाँसता है रात को, क्या दिल में डर नहीं आता?
या हमने सोच लिया है अब, सब कुछ ऐसे ही चलता जाता?
तुमने कागज पर तो लिखा है, 'हरियाली आएगी कल',
पर सड़कों पर है धुआँ काला, और गड्ढों में भरा गन्दा जल।
तुम्हारे वादे, तुम्हारी योजनाएँ, सब हवा में उड़ जाती हैं,
क्या इस धरती की बर्बादी, सिर्फ हमारी जिम्मेदारी है?
कुर्सी वाले चुप बैठे हैं, क्या उनका घर नहीं जलता?
जो बंगलों में शांत बैठे हैं, शीशे की दीवारों में,
उन्हें क्या खबर है उस गरीब की, जो फँसा है बीमारों में?
वो 'क्लीन एयर' की बातें करते, खुद गाड़ी बदल देते हैं,
क्या उनके बच्चे भी ये गंदगी, विरासत में सह लेंगे?
ओ सोए हुए समर्थ लोगो! अब आँखें खोलो ज़रा।
न सरकार बदलेगी खुद से, न ऊँचे पद वाले,
जब तक हम ही सवाल नहीं पूछेंगे, बंद रहेंगे ताले।
परिवार की मेज पर बोलो! यह बात अब सबकी है,
जब हर घर से आवाज़ उठेगी, तभी सिस्टम हिलेगा।
यह चुप्पी अब टूटेगी, यह देश हमारा जागेगा।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







