मेरी तरह जीना इतना आसान भी तो नहीं,
हर मुस्कान के पीछे
मैंने एक चुप्पी बोई है —
जो हर रात सपनों में उगती है,
और सवेरे तक मुरझा जाती है।
मैंने रेत पर घर बनाया है,
पर लहरों से कभी शिकायत नहीं की,
क्योंकि मैंने सीखा है —
डरते हुए भी मुस्कुराना
एक साधना है।
लोग कहते हैं —
मैं दर्द में भी नूर रखता हूँ,
कौन समझे कि वो नूर
कितनी राख से जला है,
कितनी रातों ने उसे सँवारा है।
हाँ, मेरी तरह जीना
थोड़ा सीख लो अगर —
तो मुश्किल भी कितना ही है?
बस एक शर्त है —
दिल को काँच मत मानो,
वो टूटेगा तो दुनिया चुभेगी।
मैं तो अब खुद को
हवा की तरह जीना सिखा चुका हूँ —
ना ठहरता हूँ,
ना बिखरता हूँ,
बस बहता हूँ,
जहाँ कोई याद पुकार ले।
इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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