पाषाण को जीवंत करने,
मृत हिय में स्पंदन भरने,
लौट आओ पुनः एक बार,
मन की व्यथा को हरने,
निर्जन वन सा ये जीवन,
व्याप्त पतझड़ आजीवन,
लौट आओ पुनः एक बार,
दे सुषमा कर दो हरापन।
पीड़ादायक ये एकांतवास,
कष्टकर हुआ लेना श्वास,
लौट आओ पुनः एक बार,
लौट आए साथ पुनः साँस।
मृत्यु की अब प्रतीक्षा नहीं,
आपके अलावा, इच्छा नहीं,
लौट आओ पुनः एक बार,
बिना प्रेम कुछ अच्छा नहीं।
जलाभाव में तड़पती मीन,
प्रिय से बिछड़ती हुई दीन,
लौट आओ पुनः एक बार,
कटता नहीं जीवन उदासीन।
🖊️सुभाष कुमार यादव