झाँझ और घड़ियाल बजाते
मर्मज्ञों को ख़ूब खिझाते, ख़ूब लजाते
चरणामृत पीने का अभिनय करते धूर्त-पुजारी
जाने किस-किस राक्षस ने आरती अभी न उतारी
हे औढर औघड़ बंभोला
परम प्रबुद्ध महाकवि
हे ममतामय पिता, सनेही सखा
अकारण बंधु
सिद्ध आचार्य
वे ही तुमको पागल कहते जो हैं दुष्ट अनार्य
प्रगतिशील मानवता के हो सूझ-बूझ तुम
पाखंडों से रहे जूझ तुम
प्रपितामह तुम नए-नए पौधों के
तुम उपादान कारण मानस पौधों के
महामहिम, शुभमूर्ति, यशोधन
तुम से ही पाते आए हैं हम उद्बोधन
प्रतिभा की यह कली खिली है
तुम से ही चेतना मिली है
जय लोकोत्तर! जय युगद्रष्टा! कवि-कुलगुरु भीम ललाम!
जनयुग का यह रिक्त हस्त कवि सादर करता तुम्हें प्रणाम!
हाय रे हाय!
तुम्हारी चर्चा भी बन रही आज व्यवसाय
महाप्राण, जबरन तुमको गेरुआ पहनाकर
धूप-दीप-नैवेद्य सजाकर
हम दुनिया को ठगें, मगर धोखे में तुमको डाल नहीं सकते हैं
महाकाल के वज्र कंठ को फोड़-फाड़कर
गिरा तुम्हारी गूँज रही है :
“खुला भेद, विजयी कहाए हुए जो
लहू दूसरों का पिए जा रहे हैं...”
क्या कारण है?
हँसते हो तुम खिल-खिल-खिल
खः खः खाह-खाह-खा
क्या कारण है?
रोते हो तुम बहा-बहाकर आँसू
बुक्का फाड़-फाड़कर
क्या कारण है?
बोल रहे हो बिड़-बिड़-बिड़-बिड़
उठा-उठा तर्जनी न जाने किसे शून्य में डाँट रहे हो?
फाड़-फाड़कर आँखें, भौंहें कुंचित करके
अँग्रेजी में, बंगला में, या संस्कृत में ललकार रहे हो
किस दानव को?
माँग रहे किससे हिसाब, क़ैफ़ियत तलब किससे करते हो?
—हँसते हो तुम उन मूर्खों पर
जो युग की गति के मुड़ने का स्वप्न देखते!
—डाँट रहे शोषक समाज को
बुद्धि विमल है, प्रखर चेतना
स्फीत धारणा-शक्ति
याद रहती बातें
उत्तर देते हो पत्रों के
पाँच सात दस बीस तीस चालीस रुपैया
आए दिन ‘मनिआर्डर’ भेजा करते हो
एक-एक कूपन सँभाल रक्खा है तुमने!

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




