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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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कविता की खुँटी

                    

ज़हर से सच तक

“ज़हर से सच तक” – अभिषेक मिश्रा की कविता

आज का दौर युवाओं से सबसे बड़ी उम्मीद रखता है।
सोशल मीडिया और राजनीति ने हमारे मन में नफ़रत का ज़हर घोलने की कोशिश की है, पर असली ताक़त हम युवाओं के हाथ में है।

यह कविता एक आईना है –
👉 जहाँ कलम और किताब की जगह तलवार थमा दी जा रही है।
👉 जहाँ भाईचारे की चौपाल को नफ़रत की आग से बाँटा जा रहा है।
👉 जहाँ धर्म के नाम पर इंसानियत भुला दी गई है।

पर याद रखो,
📖 सनातन का मतलब है सबको अपनाना।
☪️ इस्लाम का संदेश है अमन और भाईचारा।
✝️ हर धर्म इंसानियत की सीख देता है।

युवाओं का धर्म है नफ़रत की दीवारें तोड़कर मोहब्बत की लौ जलाना।
क्योंकि यही लौ देश को जोड़ती है, और यही सच्चे नागरिक का कर्तव्य है।

यह कविता हमें याद दिलाती है कि किताब और कलम वाले हाथों में हथियार नहीं, बल्कि शिक्षा और इंसानियत होनी चाहिए।

👉 संदेश साफ़ है – ना हिन्दू छोटा, ना मुस्लिम बड़ा, सबसे पहले इंसान बनो और मोहब्बत को अपनाओ। यही हमारे देश की असली पहचान है।

"ज़हर से सच तक"

कभी संग बैठते थे चौपाल पे सब यार,
हँसी बाँटते थे मिल-जुलकर बार-बार।
राम की कथा सुनते थे सब यहाँ,
औली में गूँजता था अल्लाह जहाँ।

आज क्यों दीवारें बन रही हैं नई,
जहाँ मोहब्बत थी, वहाँ नफ़रत भरी।
सोशल का धुँआ है फैलता ज़हर,
सच को दबाकर बेचता है ख़बर।

सनातन का अर्थ है – सबको अपनाना,
ना कि किसी और को छोटा बताना।
क़ुरान का संदेश भी अमन सिखाए,
नफ़रत की आग में क्यों दिल जलाएँ?

मंदिर में जलाते हो अगर दीपक तुम,
तो मस्जिद की रोशनी भी है उतनी ही गुम।
गुरुद्वारे की सेवा, गिरजाघर का प्यार,
सबमें बसा है वही परवरदिगार।

बचपन में साथ खेले थे हम सब,
कभी हिन्दू, कभी मुस्लिम, सब थे रब।
जिस हाथ में कलम और किताबें थीं यार,
उसी हाथ में भर दी गई हैं तलवार।

यह राजनीति का खेल है पुराना,
बाँट कर कमाना है इनका बहाना।
पर सच में तो न कोई बड़ा, न कोई छोटा,
इंसान है सबसे पहला और सबसे सच्चा।

ना समझो सनातन को नफ़रत का नाम,
ना समझो इस्लाम को हिंसा का काम।
हर धर्म कहे है यही बार-बार,
"इंसान बनो, बस मोहब्बत करो यार।"

तोड़ो ये दीवारें जो मन में उठीं,
जलाओ वो लौ जो कभी दिल में जली।
ये देश है सबका, ये धरती महान,
मानवता से ही रहेगा इसका सम्मान।

लेखक- अभिषेक मिश्रा

✍️ लेखक का संदेश –

“मैंने यह कविता इसलिए लिखी है ताकि समाज यह समझ सके कि धर्म हमें बाँटने के लिए नहीं, बल्कि जोड़ने के लिए बने हैं।
सनातन, इस्लाम, ईसाई, सिख – सबका मूल संदेश है प्रेम और इंसानियत।
आज राजनीति और सोशल मीडिया ने हमें गुमराह करने की कोशिश की है, पर सच्चाई यह है कि इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है।

मेरा निवेदन है कि हम सब एक सच्चे नागरिक की तरह सोचें –
नफ़रत छोड़ें, मोहब्बत अपनाएँ और अपने देश को एकजुट रखें।
यही भारत की असली ताक़त है।”




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

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वन्दना सूद said

बहुत ही उम्दा रचना है आपकी 👏👏👍

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

वाह! अभिषेक जी खूबसूरत संदेश भरी कविता 👌👌👌🙏🙏🙏🌹

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