था उसका पहला दिन ससुराल में,
कुछ गुंथे सपने मन की तरंगो में,
निहारती पति को प्रेम आवेग में,
खो जाती कभी कभी पिहर याद में
सुबह की किरणें नाचती पोशाक पर,
परी सी कभी लगती खुद को धरा पर,
उड़ती मन ही मन में सपनो के समंदर पर,
सहमी जो पड़ी नज़र अजनबी चेहरों पर,
इन में से किसी को कहना होगा बहन अब,
इन में से किसी को कहना होगा माँ अब,
किस का व्यवहार कैसा होगा कौन जाने अब,
उभरी मन के पटल अपनी माँ की तस्वीर अब,
हर चेहरा पराया, हर नज़र परखी क्या होगा ?
अपनों को भुला कर जीना अब कैसा होगा ?