मैं नहीं जानता
न मैं यहाँ हूँ न तुम, ये महफ़िल भी ख़त्म हुई, इस दर्द का कोई नाम दो, अब ये ज़िक्र फिर नहीं होगा।
ये अज़ल की सादगी थी या वहम था मेरा, वो पल कब बिखरा, मैं नहीं जानता।
रिवायत है कि इंसान आगे बढ़ा सदा, पर माज़ी ने क्या पूछा, मैं नहीं जानता।
अमाँ थी जान की या अधूरी कोई साद, वो चेतना कहाँ रुकी, मैं नहीं जानता।
फ़ुसूं था कैसा कि हर सुब्ह ग़मगीन लगी, ये किस का रंज था जो बर्पा था, मैं नहीं जानता।
दवा को छोड़कर किसने ज़हर को ज़ुबाँ दी, वो अमृत कहाँ खोया, मैं नहीं जानता।
ग़नीमत था ये कि आँखें थीं पर बंद थीं, वो सफ़र न लिया गया, पर क्यूँ छूटा, मैं नहीं जानता।
मुक़ाम था आख़िरी क्या या बस एक अधूरा इल्म, ये ख़ामोशी भी क्यों गहरी है, मैं नहीं जानता।
- ललित दाधीच
मौलिक शब्दों के अर्थ (सामान्य व्याख्या)
* अज़ल: शुरुआत या आरंभ (वह समय जिसका कोई आदि न हो)।
* रिवायत: परंपरा, पुरानी रीति या प्रथा।
* माज़ी: अतीत, बीता हुआ समय।
* अमाँ: सुरक्षा, आश्रय, हिफ़ाज़त।
* साद: ख़ुशी, हर्ष, संतोष।
* फ़ुसूं: जादू, टोना, या सम्मोहन जैसा प्रभाव।
* सुब्ह: सुबह, प्रातः काल।
* ग़मगीन: दुखी, उदास।
* बर्पा: स्थापित होना, फैल जाना (जैसे, शोर का बर्पा होना)।
* ग़नीमत: सौभाग्य, अच्छा होना, संतोषजनक स्थिति।
* मुक़ाम: ठिकाना, ठहरने की जगह, मंज़िल।
* इल्म: ज्ञान, जानकारी।
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The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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