कापीराइट गजल
चलता रहेगा कब तक ये दस्तूर जिन्दगी का
कब तक निभाएंगे हम ये दस्तूर जिन्दगी का
जब तक ये जिन्दगी उलझी है उलझनों में
तब तक निभाएंगे हम ये दस्तूर जिन्दगी का
सदियों से चला आया है ये दस्तूर जिन्दगी का
अब भी निभाएंगे हम ये दस्तूर जिन्दगी का
जब तक न आ जाए इस दुनियां में क़यामत
तब तक निभाएंगे हम ये दस्तूर जिन्दगी का
सब उलझनें ही अपनी हैं दस्तूर की कहानी
जब तक है सांसों में ये सुरूर जिन्दगी का
जो कुछ भी हो रहा है ये हमको खबर नहीं
इसमें है क्या बताओ अब क़ुसूर जिन्दगी का
हर शय है जहां की उस के हाथ में यादव
किस बात पे है तुम को ये गरूर जिन्दगी का
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है