बचपन से था अध्ययन में तेज
गुरुजन चकित, सहपाठी द्वेष
दो विश्वविद्यालयों में ज्ञान फैलाया
करिश्माई प्रोफेसर कहलाया।
शिष्यों को अपनी झलक दिखाता
प्रतिभा की छाया उन पर लुटाता
पर एक दिन हृदय से स्वर निकला
अब शिक्षण में न अर्थ, न उल्लास बचा!
विश्वविद्यालय, पद, सम्मान छूटे
नई राह पर उसके कदम बढ़े
परमाणु बम का जनक बना
विज्ञान और नैतिकता में सना।
महान प्रसिद्धि कंधों पर आई
पर मन में उलझन गहरी समाई
जिसे बनाया, उसे रोकना था
दुनिया बचाने की जिम्मेदारी निभाना था।
- प्रतीक झा 'ओप्पी'
चन्दौली, उत्तर प्रदेश