काट रहे हो जंगल, तो लगाएगा कौन?
धरा को यूँ ही छलके, बचाएगा कौन?
हर शाख़ पे बैठे हैं कुल्हाड़ी लिए,
इन पंछियों को फिर से बसाएगा कौन?
काग़ज़ पे हरियाली, जमीं पर कब्रगाह,
इन झूठी रिपोर्टों को समझाएगा कौन?
जिस हाथ ने बोया था इक बीज सपना,
अब पेड़ों की लाशें उठाएगा कौन?
तू योजना बनाता है काटने भर की,
इस खोखली सोच से लजाएगा कौन?
बस्ती बनी जंगल में, घर उनका उजड़ा,
अब भूखे शेरों को समझाएगा कौन?
हाथी, हिरन, तेंदुए सब बेहाल हैं,
इन आँखों के आँसू पढ़ाएगा कौन?
बोल नहीं सकते जो, वो चिल्ला रहे हैं,
इन मासूम लाशों को दफनाएगा कौन?