रहमतों से भरी दास्तान
दास्ताने ज़िन्दगी कुछ ऐसी थी,
जब यादों के पन्ने पलटकर देखे,
तो हर पन्ना रहमतों से भरा मिला।
एक भी पन्ने पर हमारी तस्वीर नहीं थी,
पर हर शब्द शुक्रगुज़ार था उस यकीन का
जो दिखता नहीं था,पर हर पल हमारे साथ था।
हम हर मोड़ पर बेफिक्र रहे,
क्योंकि कोई गुरु बन,माता-पिता बन, सखा बन हमें थामे हुए था।
भावनाएँ,समुद्र की लहरों से भी ऊँची थीं।
ना होता उनका साथ,तो हम कब के उनमें बह गए होते।
जीवन के संघर्ष आँधियों सा तूफ़ान लेकर आए,
ना होता उनका साथ,तो हम कब के बिखर गए होते।
मेरा ‘मैं’ तो कहीं था ही नहीं।
क्योंकि हम में इतना सामर्थ्य ही नहीं था
कि ज़िन्दगी के फलसफ़ों को ख़ुद सम्भाल पाते।
हम बेफिक्र थे…क्योंकि हमारे यकीन पर हमें यकीन था।
वन्दना सूद
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