कापीराइट गजल
जब मच्छर ने काटा हमको तन अपना गमखार हुआ
ठण्ड लगी हमको ऐसी जब एक सौ तीन बुखार हुआ
जब छूटी कंपकंपी हमारी कांप उठा तन सर्दी में
ओढ़े तीन-तीन कम्बल जब सर्दी का प्रहार हुआ
एक नामी अस्पताल का नाम बहुत था चर्चा में
उसकी सेवाएं लेने का मन में नेक विचार हुआ
जब हम पहुंचे अस्पताल में भीड़ लगी थी भारी
पन्द्रह सौ अदा किए तब डाक्टर का दीदार हुआ
टेस्ट कई लिख डाले उसने लिख दी पर्चे पर गोली
तीन वक्त खाना एक गोली शुरू मेरा उपचार हुआ
डाक्टर बोले कल आना तुम लेकर टेस्ट रिपोर्ट अपनी
टेस्ट रिपोर्ट संग आने का उसके साथ करार हुआ
अगला दिन था शनिवार ये टेस्ट रिपोर्ट नहीं आई
अस्पताल की छुट्टी हो गई अगला दिन रविवार हुआ
उतरा नहीं बुखार मेरा डाक्टर की उस गोली से
यूं सोमवार को अस्पताल में जाने का विचार हुआ
सोचो तीन दिनों में अब क्या हाल हुआ होगा मेरा
हिल गए जोड़ मेरे सारे ये तन मेरा बेजार हुआ
टेस्ट कम्पनी और डाक्टर दोनों मालामाल हुए
टेस्ट और दवाओं में जब कमीशन ही आधार हुआ
आखिर में लोकल डाक्टर से हमने इलाज कराया
जैसे ही गटकी तीन डोज बुखार का बंटाधार हुआ
अच्छे ईलाज के चक्कर में ये जेब हो गई खाली
एक नामी अस्पताल में जब अपना उपचार हुआ
बड़े अस्पताल में यादव कब चैन मिला है रोगी को
लूट मचाई पब्लिक से अच्छा खासा व्यापार हुआ
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
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