तू खेलता रहा, और हम बर्बाद होते रहे,
तेरे फरेब भी तेरे ही इबादत होते रहे।
तू कहता रहा — “मुझे प्यार समझ नहीं आता”,
फिर भी औरों के लिए बेपनाह ज़ज्बात होते रहे।
हम हर रोज़ खुद को तेरे नाम करते रहे,
और तेरे लिए हम बस कुछ रात होते रहे।
तेरे झूठ भी ‘सीरियस’ लगे, तेरी बातें भी ‘क्लासी’,
हम हर वक़्त तेरे लिए औकात से ज़्यादा होते रहे।
तू मोहब्बत के नाम पर बस टाइमपास करता रहा,
और हम हर इशारे को ‘क़सम’ समझते रहे।
तेरे पास ‘स्पेस’ था, तेरे पास ‘ज़िम्मेदारी’ नहीं थी,
हम तेरी ग़लतियों के भी खुद गुनहगार होते रहे।
तू आज भी मासूम है, तू आज भी बेगुनाह,
वाह! दिल तोड़कर भी तेरे चर्चे पाक़ होते रहे।
अब सुन —
तू ज़िक्र के लायक नहीं, सबक़ बन गया है,
तेरे जैसे तो सैकड़ों, मगर हम खास होते रहे।