बच्चों को अनाथ बनाते,
माँओं के आंसू बहाते।
बेगुनाहों को मौत के घाट उतारते,
फिर भी शर्म नहीं आती।
कानून को ताक पर रखते,
देशद्रोह का जश्न मनाते।
आतंकवाद का जाल बुनाते,
फिर भी पकड़े नहीं जाते।
कहाँ गया इंसानियत का दामन,
कहाँ गया न्याय का तराजू।
आतंकवादियों को फांसी दो,
ये है हमारा नारा।