माँ…
तू सिर्फ़ जननी नहीं—
तू धरती है।
जिस पर मैं गिरा, बिखरा, टूटा—
पर हर बार,
तेरी गोद की नमी ने
मुझे फिर जीवन दिया।
तू वो सुबह की धूप है
जो मेरी नींद में उतरती थी,
तेरे स्पर्श में
सूरज की पहली किरण
और चाँद की अंतिम चुप्पी दोनों समाई थीं।
माँ,
दुनिया अब मेरे कंधों पर
पत्थर रखती है—
हर रिश्ता
एक अनकहा समझौता बन गया है,
हर प्यार—
एक उधार की साँस जैसा लगता है।
मैं थक गया हूँ, माँ…
लोग मुस्कुराते हैं,
पर उनकी आँखें
आईनों से भी ज़्यादा झूठ बोलती हैं।
माँ मैं फिर से बच्चा बनना चाहता हूँ—
जिसे नींद से पहले
तेरे आँचल की कहानी चाहिए होती थी,
जिसे भूख से पहले
तेरे हाथ की रोटी की खुशबू जगाती थी।
माँ,
तू नदिया है—
मैं तुझमें बहकर
हर दुख को धो देना चाहता हूँ।
तू हवा है—
मैं तेरे आंचल में छुप कर
हर जहर को छोड़ देना चाहता हूँ।
तेरे केशों की खुशबू में
अब भी मिट्टी की वही महक है,
जिसे सूंघते ही
मेरे अंदर का संसार
शांत हो जाता है।
अब इस संसार से दूर—
जहाँ प्रेम भी व्यापार हो गया है,
जहाँ अपनापन
नाम की एक रस्म बन कर रह गया है—
मैं तेरी गोद में सर रखकर
फिर से मिट्टी बन जाना चाहता हूँ।
ना कोई नाम हो,
ना चेहरा,
ना कोई रिश्ता
जो पहचान माँगे।
बस तू हो—
तेरे हाथों की थाप हो,
तेरी लोरी की धीमी बूँदें हों,
और मैं—
एक चुप नींद में
तुझमें सिमट जाऊँ…
हमेशा के लिए।
-इक़बाल सिंह “राशा“
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




