मेरे चांद का मैं दीदार कर लूं।
ह्रदय को अपने मैं बेक़रार कर लूं।
मिला दूं खुदी को हकीकत से अपनी,
हर ख़्वाब से खुदको मैं बेदार कर लूं।
बस्ती है मुझमें , तेरी जान भी तो,
बता कैसे खुदको मैं बीमार कर लूं।
शामिल नहीं यह फितरत में मेरी ,
इक़रार करके मैं इनकार कर दूं।
मुमकिन न हो जब उसूलों का सौदा।
अपनी अना को मैं बेदार कर दूं।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद