हरिया - दरिया की और मुखातिब होते हुए, - भाई जी नमस्कार, इतने दिनों से कहां गायब थे, हमारी मोहब्बत की दुकान की टीआरपी नजर ही नहीं आ रही है।
दरिया - नमस्कार भाई जी, वो क्या है कि कुछ दिन पहले दिल्ली में स्वतन्त्रता दिवस समारोह और उसकी भव्य परेड देखने का कार्यक्रम बन गया, इसलिए दिल्ली यात्रा पर गया हुआ था।
हरिया - फिर तो आपको बहुत मजा आया होगा।
दरिया - हां भाई जी बहुत मजा आया, क्या शानदार परेड थी और उस पर मोदी जी का भाषण देखने लायक था। मगर इन लिखनतु वालों को क्या हुआ परसों रक्षाबंधन का त्यौहार है और यहां कोई दिखाई क्यों नहीं दे रहा।
हरिया - आप किसकी बात कर रहे हो।
दरिया - अरे, वही अपने शायर, कवि और लेखकों की जो दिन भर यहां पर धमा चौकड़ी मचाए रखते हैं जैसे- प्रेम सागर, इशकराज, टीना, मीना और सबीना।
हरिया - भाई आजकल सभी पुरूष अपने काम पर लगे हुए हैं और सभी महिलाएं अपने भाइयों को राखी बांधने के लिए कार्यक्रम बना रही हैं, इसलिए यहां सिर्फ वही लोग मंडरा रहे हैं, जिनके कोई भाई नहीं हैं या जिनकी कोई बहन नहीं हैं।
दरिया - फिर इन घनचक्करों को हमारी शायरी खाक समझ आएगी।
हरिया - भाई जी मोहब्बत की दुकान खोलकर बैठे हैं कुछ तो सुनाना ही पड़ेगा।
दरिया - भाई जी आप कहते हैं तो लीजिए एक नया मुक्तक पेश है -
सर्वाधिकार अधीन है