चीखा है फिर चिल्लाया है,
आवाज पड़ी है कानों में,
क्या यही लिखा है वेदों में,
महाभारत में कुरानों में,
या कमजोर हुई धरती,
दम नहीं रह गया दानों में,
या खून ही पानी हो बैठा,
इस देश की इन संतानों में,
कातिल थी जो वो दोधारी,
तलवार पुरानी माँगी है,
आकाश ने माँगी है बिजली,
धरती भी पानी माँगी है,
मरने से पहले मार धरे,
फिर वही जवानी माँगी है,
फिर भगत सिंह को माँगा है,
झाँसी की रानी माँगी है,
कलम लाल माँगे स्याही,
फिर लिखने लाल इबारत को,
फिर खून चाहिये भारत को,
फिर खून चाहिये भारत को..............
अपनी चोंचों से नोच रहे,
गिद्धों को आग में खाक करे,
लपटें वो मशालें माँगी हैं ,
दमदार दुनालें माँगी हैं ,
प्यासे हैं भूखे बठ हैं,
कुछ जौ की बालें माँगी हैं,
जो पहने गीदड़, शेरों की,
वो सारी खालें माँगी हैं,
उन सबकी छाती माँगी है,
गढ़ना है लाल इमारत को,
फिर खून चाहिये भारत को,
फिर खून चाहिये भारत को......................
पतझड़ से तड़पी बगिया ने,
मौसम मनभावन माँगा है,
कलियों ने खुश्बू माँगी है,
फूलों ने सावन माँगा है,
गंगा ने भीख में घाट किनारे,
पानी पावन माँगा है,
ज्वाला ने खुद को भरने को,
अंगार भरावन माँगा है,
फिर दुआ में माँगा है सबने,
उस सुम-आमीन शहादत को,
फिर खून चाहिये भारत को,
फिर खून चाहिये भारत को......................
सरकार ने अस्मत लूटी है,
नेताओं ने पैसा माँगा है,
बेबस बैठी आवाम ने अब,
जैसे को तैसा माँगा है,
मिल जाए शिरीं हो जाए रहम,
फरहाद ने ऐसा माँगा है,
अब हर माँ ने अपना बेटा,
आजाद के जैसा माँगा है,
माँगा ही नहीं है शरीफों ने,
अपनी मजबूर शराफत को,
फिर खून चाहिये भारत को,
फिर खून चाहिये भारत को......................
खुशी में भीगीं पलकें और,
असुओं की धारें माँगी है,
दरिया ने साहिल माँगा है,
बरखा ने बहारें माँगी है,
वीर जगो मरदान जगो,
खूनी बौछारें माँगी है,
आवाम ने फिर से आजादी ,
हालात के मारे माँगी है,
हर फनकार ने माँगा वापस,
अपनी उसी महारथ को,
फिर खून चाहिये भारत को,
फिर खून चाहिये भारत को......................
विजय वरसाल.................