रुखसत हो गया मगर दिल से जाएगा कब।
मरूस्थल में फूल खिला गया बुलाएगा कब।।
जो कह न पाई समझा रही होंगी हवाएं उसे।
अगर वक्त पर रोक लेती तो हो जाता गजब।।
सूरज की किरण से मेरा चेहरा तमतमा गया।
यह सोचकर लजा सी गई क्या खूब रहा सब।।
जमाना कुछ भी कहे मर मर कर हुआ जीना।
चेहरे पर हल्की मुस्की 'उपदेश' उसका सबब।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद