आकाश का एग्जाम हो चुका था और आज वह शहर से अपने गांव लौट रहा था अपनी खूबसूरत यादों के साथ।
9th" में ही चला गया था वो शहर बिलासपुर पढ़ने।
बहुत मुश्किल हुआ था उसे 8th" तक गाँव में पढ़ने के बाद शहर जाकर एडजस्ट होने में।
वह शहर में पढ़ने तो लगा था लेकिन उसका मन आज भी गाँव में ही रहता था।
ख़ासकर वसुन्धरा को दिलो-जान से चाहता था वो।
उसके अपने गाँव "रकबा" में मेन रोड के माध्यम से घुसते ही जो सबसे पहला घर पड़ता था, वो वसुन्धरा का ही था।
आकाश की दीवानगी तो इतनी थी वसुन्धरा के लिए कि..
एक बार जब उसे पता चला कि वसुन्धरा को खट्टे-मीठे बेर बहुत पसंद हैं तो वो अगले ही दिन पूरे खेत-खार यानि आसपास के जंगल में से छाँट-छाँटकर बेर लाया था और वसुन्धरा को दिया।
वसुन्धरा खा रही थी और आकाश उसे खाते हुए देखकर बहुत खुश हो रहा था..।
वह प्यारी जुबान से वाह-वाह बोल रही थी और आकाश अपने सारे ज़ख्म भूल चुका था ।
दरअसल बेर तोड़ने के चक्कर में उसके पाँव मे काँटे चुभ गये थे जिससे उसका पाँव कई जगह से ज़ख्मी हो चुका था।
मगर अपनी तकलीफ को उसने वसुन्धरा को बिल्कुल भी नहीं बताया।
" कौन कहता है कि आशिक़ी एक उम्र में ही हुआ करती है..मगर ये वो अहसास है जो हर उम्र में हुआ करती है !!
कोई जता देता है..तो कोई जता ही नहीं पाता, मगर ये वो जज़्बात है जो लगभग हर दिल से गुजरा करती है !! "
ट्वेल्थ का एग्जाम बहुत अच्छा गया था आकाश का।
जैसे ही वो स्टेशन से उतरकर एक मेन बस स्टाॅप से बस में बैठकर वह अपने गाँव की ओर जाने लगा तो उसके कल्पना के जो घोड़े हैं कुछ ज्यादा ही रफ्तार से दौड़ने लगे ।
उसे याद आने लगा कि कुछ देर के बाद तालाब मिलेगा.. कुछ देर के बाद.. वह चौक मिलेगा।
कुछ देर के बाद ये मिलेगा.. कुछ देर के बाद वो मिलेगा ।
लगभग एक घंटे के बाद गांव में एन्टर करते ही 8th क्लास तक एक ही साथ में पढ़े वसुंधरा का घर आने ही वाला था जिसके बारे में सोच-सोचकर मन ही मन खुश हो रहा था आकाश।
खिड़की के पास वह बैठा हुआ निहार रहा था उस हर पेड़ को जो आते समय पड़ता था । हर चौक को गौर से देख रहा था आकाश।
अचानक जैसे ही उसकी बस वसुंधरा के घर से गुजरी तो वहां बहुत से लोगों की भीड़ देखकर वह कुछ समझ नहीं पाया कि आखिर माज़रा क्या है ??
उसके दिमाग में बहुत सारे सवाल चल रहे थे ..वह बस में किसी से पूछ भी तो नहीं पा रहा था क्योंकि इतनी तो अंडरस्टेंडिंग उसे आ चुकी थी कि इस तरह पूछना ठीक न होगा।
घर आने के बाद चूँकि सवाल तो बहुत से चल रहे थे उसके दिमाग में...
मगर खुशियां भी कम नहीं थी उसे अपने घर पहुंचने की ।
खुशी यानि अपनी माँ से.. पिताजी से मिलने की खुशी और अपने भाई बहनों से भी मिलने की खुशी।
अपने पुराने दोस्तों से मिलने की खुशी के लिए तो थोड़ा इन्तज़ार ही करना पड़ा आकाश को क्योंकि वो घर पहुँचा था दोपहर को।
इसलिए तत्काल निकलना उचित भी नहीं था !
घर में वसुन्धरा के बारे में पूछना यानि खुद के पोल-पट्टी खुलने का डर।
दोपहर को भोजन करने और आराम करने के बाद घूमने निकला आकाश अपने गाँव।
उसके बचपन का दोस्त गंगाराम मिला उसे सबसे पहले ।
उसने मिलते ही सबसे पहले यही बात पूछी कि यार वसुंधरा के घर में इतनी भीड़ क्यों लगी थी ??
दोपहर को जब मैं बस से घर आ रहा था तभी देखी थी भीड़ मैंने..तभी से ही परेशान हूँ मैं।
गंगाराम भी जानता था कि आकाश उस वसुंधरा को कितना दिलो जान से चाहता है ..
तो उसने एकटक निगाहों से सबसे पहले देखा आकाश को ..और यही कहा कि,
अगर तुम्हें बुरा न लगे आकाश और सुन सकोगे तो बताऊंगा !
आकाश ने कहा, बिल्कुल यार ..जो भी बात है ! बताओ और बेझिझक दिल खोल के बताओ।
मैं सुन सकता हूं !
उसके बाद गंगाराम ने यह बताया कि..
वसुंधरा, अपने दूसरे समाज के किसी लड़के से जिसका नाम राकेश है ।
भाग कर उसके साथ शादी कर ली है। जिसकी वजह से उसके घर के लोग उस लड़की को एक प्रकार से मरा हुआ ही मानकर उसकी " मरती-जिरती " मना रहे हैं।
यह बात सुनकर पहले तो दुख लगा बहुत ही ज्यादा आकाश को..क्योंकि उसके बचपन की चाहत आज किसी और के बाहों में जा चुकी थी ।
गंगाराम भी समझ पा रहा था आकाश की स्थिति मगर किया भी क्या जा सकता था।
सपने तो बहुत संजोये थे आकाश ने कि जब वह कानून के हिसाब से 21 साल का हो जायेगा तो कानूनन वह वसुन्धरा की माँग में सिन्दूर भरता लेकिन वो तो अभी बारहवीं भी पास नहीं हुआ था ।
मगर गलती आकाश की भी थी क्योंकि उसने खुलके कभी इज़हार भी तो नहीं किया था वसुन्धरा को कि..
वह उससे प्यार करता है और उससे शादी भी करेगा !
सिर्फ बेर खिला देने मात्र से ये थोड़ी साबित हो जाता है कि वह चाहता भी है दिलो-जान से और शादी भी करेगा कभी।
पढ़ाई में अव्वल था मगर आशिक़ी में फिसड्डी था आकाश।
कई बार उसने बताना भी चाहा मगर बात कक..मम..पप..छछ..जज..और झझ में ही सीमित होके रह गई। इससे आगे बात कभी ज्यादा कुछ बढ़ी भी नहीं।
आजकल आंशिक़ी भी आई लव यू के सील-मोहर का ठप्पा माँगती है !!
काल्पनिक और वास्तविक कहानी में बहुत अन्तर है !
आकाश की लव स्टोरी कल्पना से शुरू होकर कल्पना में ही समाप्त हो चुकी थी और वास्तविक रूप से वसुन्धरा राकेश के साथ भाग चुकी थी।
यही सच था जिसे मन-मसोसकर स्वीकार करना ही पड़ा आकाश को।
अब आहें और करवटें बदलने के अलावा आकाश के पास कोई काम और काम न था ।
बहरहाल राकेश बिजनेसमैन था और घर से ही वसुंधरा के साथ जेवर व रूपये -पैसे लेकर फ़रार था।
खुद को सँभालते हुए आकाश ने गंगाराम से पूछा- ये " मरती-जिरती " क्या है ??
तो गंगाराम ने आगे बताया ..क्योंकि वसुन्धरा और राकेश दोनों अलग-अलग समाज के हैं इसलिए उनकी शादी क़ानूनन वैध होने के बाद भी सामाजिक रूप से स्वीकार्य नहीं की गई थी ।
चूँकि लड़का दूसरे समाज का है इसलिए अब उस लड़की का अपने घर से सारे रिश्ते ही खत्म मान लिये गये हैं !
भविष्य में उस लड़की का अपने मम्मी-पापा, रिश्तेदारों यानि लगभग-लगभग सभी से ही रिश्ता पूरी तरह खत्म।
इस प्रकार की बात सुनकर आकाश हतप्रभ भी था और गम्भीर भी।
उसके दिमाग में बहुत से सवाल चल रहे थे जिनमें से एक मुख्य था कि क्या किया जाये आखिर इस तरह की प्रथा का ??
सुनने में आया है ,आकाश आजकल काफी बड़ा जज बन गया है !!
आज ही उसके कोर्ट में इसी टाइप का केस आया था जिसमें उसने अपने फैसले में सभी संवैधानिक संस्था को आदेशित किया है -
"आज के ज़माने में इस प्रकार की कुप्रथा का अन्त होना चाहिए जिसके लिए सभी संवैधानिक संस्थाओं को इसके निर्मूलन में कड़ाई से सहभागिता दिखानी होगी !
भविष्य में इस प्रकार की कुप्रथाओं का अगर निर्मूलन नहीं किया गया तो सम्बन्धित व्यक्ति अथवा संस्था के खिलाफ कड़ाई से कार्यवाही की जायेगी और अधिकतम से अधिक सजा का प्रावधान किया जायेगा !!
लेखक : वेदव्यास मिश्र
प्रिय पाठक, नमस्कार !!
क्या आपके तरफ भी ऐसी कोई प्रथा है जो आज के विकसित व सभ्य समाज में सवाल पैदा करती है ??
अगर आपके सामने भी ऐसी कोई समस्या आये तो उसके निराकरण के लिए क्या आप कोई प्रयास करेंगे !!
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सर्वाधिकार अधीन है