कैसा है ये शहर तेरा जिसकी आब ओ हवा कुछ और है
और एहसान तेरा कि रस्ता मेरा कहीं और है
हसरत ए गुल ए दस्त मेरा तू जानता नहीं है
तू अब आजाद न कर सकेगा हमें दिल तेरा कहीं और है
जब तू हुक्म करे हाजिर हूं खिलाफ तेरी मर्जी का
मैं कर सकता नहीं शायद ख्याल तेरा कहीं और है
सच ये भी तू मेरा हो न सकेगा कभी मैं जानता हूं
शायद इसीलिए दिल ओ दिमाग तेरा कहीं और है
हम तेरी गलतफहमियों के हो रहे शिकार हालांकि
निभाया वफा शिद्दत से और दिल तेरा कहीं और है
🙏मेरी स्वरचित गज़ल बेचैन तमन्ना🙏