ये बेतहाशा भीड़ देखकर शहर की,
कभी कभी मैं सोचता हूं,
ये रात को कैसे पूरी आती है इन
संकुचित से घरों में..
खाने की मेज़ पर,
दिन भर की दौड़ धूप,
रात्रि भोज की थाली में
सुस्ताती है,
और फिर फैलकर सो जाती है
कमरों में..
मगर कुछ चिंताएं अब भी सिरहाने खड़ी है
दिनभर की गलतियों की
फेहरिस्त लिए,
वो फुसफुसा कर दिमाग की नसों में
भर देना चाहती है कल के लिए नई
मुश्किलें..
अभी नींद से एक जद्दोजहद भी बाकी है
परेशानियों को मामूली और
खुशियों को बढ़ा चढ़ाकर बताने पर भी
दिलो दिमाग को सुकून महसूस नहीं
हो रहा..
नकारात्मकता को हटाने और
सकारात्मकता को जागृत करने का
अभ्यास भी हर बार सफल नहीं हो रहा..
ये शहर की तासीर मेरी फितरत के लिए
शायद कुछ माकूल नहीं..
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




