कापीराइट गजल
बाहें फैलाए बैठा हूं
तू लाख चुरा दामन हम से
मैं दामन को फैलाए बैठा हूं
तू लाख चुरा, हम से नजरें
मैं अब प्यार जताए बैठा हूं
तू लाख बना ये दूरी हमसे
मैं यह आस लगाए बैठा हूं
मैं तेरे प्यार, का प्यासा हूं
मैं ये प्यास जगाए बैठा हूं
तू लाख छुपा खुद से ऐसे
मैं ये आंख लगाए बैठा हूं
कितनी सदियां गुजर गई
मैं ये प्यार लुटाए बैठा हूं
तुम आओ, या ना आओ
मैं गलियां सजाए बैठा हूं
रह-रह कर, बरसे हैं नैना
मैं, दरिया, लुटाए बैठा हूं
आए नहीं, तुम अब तक
मैं दिलको, लुटाए बैठा हूं
पूरी होगी कब आस मेरी
मैं दामन, फैलाए बैठा हूं
क्या कहते हो तुम यादव
मैं ये बाहें फैलाए बैठा हूं
- लेखराम यादव
… मौलिक रचना …
सर्वाधिकार अधीन है