मुश्किलों की आंच से मन पक रहा।
अपनों के झूठे भरम से मैं थक रहा।।
यादों के पीछे पीछे तुम आ रहे जैसे।
हर शाम इंतजार में हृदय भटक रहा।।
अब कोई किसी का हमदर्द ही नही।
हर किसी का रास्ता जैसे पृथक रहा।।
ग़म की धूप में गर कोई रिश्ता मिले।
दिल में तब भी फिजूल का शक रहा।।
जिन्दगी है इम्तिहान डर नही 'उपदेश'।
मेरा मन अदृष्य तिनके से अटक रहा।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद