अगर लड़की को भगाना ही था
तो पहले ही भाग जाती
शादी के इक दिन पहले क्यों
लड़के, घरवालों को रुलाती?
यूँ घोर अपमान न सहना पड़ता
न रिश्तों की इज़्ज़त जाती।
क्या महिला आयोग
सिर्फ महिलाओं के ही
एक
पक्ष को देखेगा?
आख़िर पुरुष जाए तो जाए कहाँ?
कोई पुरुष आयोग भी तो नहीं
आखिर
ये कैसी समानता है ?
-प्रतीक झा 'ओप्पी' (चन्दौली, उत्तर प्रदेश)