शीर्षक:- कर्मनाशा
लार से तेरे नदी बहे?
तो थार में नदी बनाना !!
कर्मनाशा गंगा की बहन ,
कैसे है, अछूत, बताना ?
मर रहे जीव हैं, शुष्क क्षेत्र
पर दया दृष्टि दिखलाना।।
लार से तेरे नदी बहे ?
तो थार में नदी बनाना !!
रच रच कर पाखंड किताबी
क्यों, निज मान बढ़ाया है?
है ,सर्व शक्ति संपन्न प्रकृति ,
क्यों अपना सृजन बताया है?
है,यह अक्षम्य दुस्साहस तेरा,
यूं निज कृत प्रकृति बताना।।
लार से तेरे नदी बहे तो,
थार में नदी बनाना ।।
नदियों के उद्गम की कथा,
गढ़ गढ़ क्यों झूठ सजाया है?
जैसे कि नदी प्राकृतिक नहीं,
मानव ने नदी बनाया है ।
सामर्थ हो नदी बनाने में,
तो बस इतना कर जाना।।
लार से तेरे नदी बहे तो
थार में नदी बनाना!!
खुद को तो छूत अछूत कहा,
यह बहुत पराक्रम कर डाला।
क्यों निज पराक्रमित प्रकृति कहा?
क्यों लिखा अछूत नदी नाला।।
खुद ही तेरा उद्देश्य रहा है,
हद तक पाखंड बढ़ाना।
लार से तेरे नदी बहे तो,
थार में नदी बनाना!!
जब स्वर्ग -नरक तुम घूम घूम,
विवरण लिख दिया किताबों में।
तुम गए स्वर्ग फिर लौट लिए,
क्यों फंसे त्रिशंकु विवादों में?
इस दोहरे पाखंड लेख का,
क्या आशय है?मुझे बताना।
लार से तेरे नदी बहे तो
थार में नदी बनाना!!
पाखंड तुम्हारे निरख निरख,
यह प्रकृति बराबर हंसती है।
कहती है जितना उछल कूद,
मेरे हांथ तुम्हारी कश्ती है।।
औकात तुम्हारी कितनी है?
मैं देखूं, यह दिखलाना।
लार से तेरे नदी बहे तो,
थार में नदी बनाना!!
प्रस्तुतकर्ता कवि:-
पाण्डेय शिवशंकर शास्त्री निकम्मा
मंगतपुर पकरहट सोनभद्र उत्तर प्रदेश।
नोट:-
मेरे संपूर्ण रचनाओं, लेखों, और निबंधों, पर मेरा सर्वाधिकार है।
मेरा आशय किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।कर्मनाशा को अछूत कहना, या फिर प्रकृति को अपने द्वारा निर्मित कहना, एक बहुत बड़ा पाखंड और दुस्साहस है,।
मेरी रचनाएं किसी की आस्था को ठेस नहीं पहुचाती हैं। यदि किसी को ठेस पहुंच गई तो इसका जिम्मेदार मैं नहीं अशिक्षा है।