द्वारिकाधीश के द्वार पर बाहर खड़े
एक सोच आए एक सोच जाए
कौन आया तेरे द्वार प्रभु को क्या बोलें
पुजारी का मान बहुत ऊँचा
ब्रह्मांड के शहंशाह का दास अपने को कैसे कहें
भक्तों में गिनती तो कोई विरला ही पाए
फिर कहा कि चरणों के दर्शन पाने एक भिखारी आया
दर्शन दे दो ऐसे कि चरणों से प्रीति कभी न छूटे
मन में आस्था ऐसे जगा देना कि कभी विश्वास न टूटे
प्रभु की कृपा हुई ऐसी
कि क्षण भर में ही द्वारिकाधीश अपना घर ही लगने लग गया
-वन्दना सूद