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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

वक्त बदल गया

अब मुहब्बत की वो, रंग–ओ–रंगत कहां..
गुलाबी कलियों को, छिपाए हुए खत कहां..।

मैं रोया बीती यादों के कांधों पर सर रखकर..
ज़माना हंसता रहा, मैं था जाने गलत कहां..।

बदला तो वक्त से पहले ही, वक्त बदल गया..
मैं भी तो वो ना रहा, बताने की ज़रूरत कहां..।

अभी–अभी कौन गुज़रा था, इंसान के जैसा..
नज़र उठाकर देखूं, अब इतनी भी फुर्सत कहां..।

तेरी बे-रुख़ी से दिल में कुछ मुगालते ना रहे अब..
हाथ की लकीरों से फिर, अलहदा किस्मत कहां..।

पवन कुमार "क्षितिज"




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (11)

+

शिवचरण दास said

वाह वाह. ...बहुत खूब. ..पवन जी क्षितिज स्पष्ट hai

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

अभी अभी कौन गुजरा, इंसान की तरह। वाह बहुत सुंदर रचना। हरेक बंध में समायी हुई प्रेम की भावुक स्मृति। खूबसूरत लिखा पवन जी। बधाई हो।

सुभाष कुमार यादव said

खूबसूरत नज़्म।👌👌

पवन कुमार "क्षितिज" said

आप सभी का दिल से आभार 🙏

रीना कुमारी प्रजापत said

वाह! क्या बात है बहुत खूब

Supriya sahu said

वाह...बहुत खूबसूरत रचना पवन सर 👌👌, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

पवन कुमार "क्षितिज" said

आप सभी का शुक्रिया जी

वन्दना सूद said

क्या बात sir 👏👏👌👌बहुत खूब

Ankush Gupta said

अभी–अभी कौन गुज़रा था, इंसान के जैसा.. नज़र उठाकर देखूं, अब इतनी भी फुर्सत कहां...वाह वाह. ...क्या बात 👏👏👌👌बहुत खूब

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

बहुत ही दिल को छू लेने वाली बातें हैं, हर शेर में जिंदगी के दर्द और हकीकत की परतें बयाँ होती हैं। ऐसे जज़्बातों को शब्दों में पिरोना आसान नहीं, आपका लेखन दिल को गहराई तक छू गया - आपको सादर प्रणाम 🙏🙏

पवन कुमार "क्षितिज" said

अशोक जी अपने तो मैने लिखा उससे भी गहराई से विश्लेषण किया है..हौसला अफजाई के लिए आपका शुक्रिया..वंदना जी ओर अंकुश जी का भी बहुत बहुत आभार मानता हूं 🙏🙋

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