अब मुहब्बत की वो, रंग–ओ–रंगत कहां..
गुलाबी कलियों को, छिपाए हुए खत कहां..।
मैं रोया बीती यादों के कांधों पर सर रखकर..
ज़माना हंसता रहा, मैं था जाने गलत कहां..।
बदला तो वक्त से पहले ही, वक्त बदल गया..
मैं भी तो वो ना रहा, बताने की ज़रूरत कहां..।
अभी–अभी कौन गुज़रा था, इंसान के जैसा..
नज़र उठाकर देखूं, अब इतनी भी फुर्सत कहां..।
तेरी बे-रुख़ी से दिल में कुछ मुगालते ना रहे अब..
हाथ की लकीरों से फिर, अलहदा किस्मत कहां..।
पवन कुमार "क्षितिज"