मन्दिर जाने से
पत्थर की मूर्ति के दर्शन से
मेरी प्यास बुझती है तो,
इससे बड़ा अनर्थ और क्या है।
मंत्र उच्चारण से
माला फेरने से
मेरा समाधान होता है तो,
इससे बड़ा अनर्थ और क्या है।
तीर्थ जाने से
ग्रंथ -पुराण पढ़ने से
मै सुखी हो जाता हूँ तो,
इससे बड़ा अनर्थ और क्या है।
कथा - कीर्तन करने से
वेद - गीता कंठस्थ करने से
मै तथाकथित धर्माचार्य बन जाता हूँ तो,
इससे बड़ा अनर्थ और क्या है।
पूजा -पाठ करके
ध्यान -धारना में उतर के
मै तुझे देखे बीना ही मर जाता हूँ तो,
हे भगवंत...
इससे बड़ा अनर्थ और क्या है।
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️