©हाइकु संग्रह: "संसाधनों की भूख"
1.
कोई भी वर्ग —
संसाधन से शुरू हो,
भेदभाव गहरे।
2.
बांटने वाली —
एक वस्तु ही काफी,
वो अधिकार है।
3.
भूखे हैं बहुत,
पर भूख है अधिकार की —
न कि रोटी की।
4.
मणिपुर जला,
पर चुप थे जो पदों पर —
वे विदेश गए।
5.
शब्दों के देश,
पर भाषा को ही मरोड़ —
राजनीति करे।
6.
कपड़े उतरे,
पर आत्मा नहीं खुली —
फिल्में मौन रहीं।
7.
वन काट दिए,
पर नारे वनरोपण —
जनता लगाती।
8.
जंगल बचे ना,
पर जंगलराज सजे —
नीतियों में ही।
9.
न्याय मौन है,
क्योंकि कुर्सी बोलती —
अपना ही स्वर।
10.
शिक्षा की बाग,
अनपढ़ ने ही सींची —
फल कौन खाए?
11.
राष्ट्र कटता है,
नक्शे से नहीं, मन से —
और हम चुप हैं।
12.
ए.सी. कमरा,
बाहर तपती जनता —
नीतियाँ जमती।
13.
टुकड़ों में देश,
भाषा-धर्म में बँटा —
पर सत्ता अखंड।
14.
भविष्य लापता,
पर विज्ञापन भारी —
आश्वासन रोज़।
15.
केट वॉक चले,
सिंहगमन भूखा हो —
बस मंच बचे ।।
"संसाधनों का सत्य – एक हाइकु संवाद"
- ललित दाधीच