बिन देखे भी चाहत खिले हैं
जैसे पुष्य हो
बहार तो सृष्टि का गहना है
जैसे महकता पवन हो
कोई बता नहीं पाता जहां कैसा है
जैसे एक बूंद ओस की हो
रिश्ते भी गज़ब होते है
जैसे रेशम का धागा हो
और कोई ऐसी नमी भर जाएं
जैसे स्मरण का ताज हो
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जैसे पुष्य हो
बहार तो सृष्टि का गहना है
जैसे महकता पवन हो
कोई बता नहीं पाता जहां कैसा है
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रिश्ते भी गज़ब होते है
जैसे रेशम का धागा हो
और कोई ऐसी नमी भर जाएं
जैसे स्मरण का ताज हो