जहाँ इच्छा का एक तृण भी जन्म लेता है
जहाँ कामना की एक बूँद भी शेष रह जाती है
ध्यान रहे
यह तृण तुम्हे पीड़ा की रेगिस्तान में ले जायेगा
यह बूँद तुम्हे दुःख के दर्या में ढकेल देगी
इससे बचो
योग को जोड़ लो
जहाँ योग का दिव्य मधुबन
जहाँ पिछे मुड़कर देखने को कुछ शेष बचा नहीं
हे भगवंत...
वहाँ तुम और तुम्हारी असीम कृपा।
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️