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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

वेदव्यास मिश्र के द्वारा एक संस्मरण - कुछ तो था वहाँ पर..??

बात बहुत पुरानी है। लगभग-लगभग अठारह-उन्नीस साल पुरानी।

बात सिर्फ कहने को ही पुरानी है मगर आज भी याद करता हूँ तो बिल्कुल नई लगती है।
इतनी जीवन्त लगती है कि याद करके मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं आज भी।

मैं रिकॉर्डिंग के सिलसिले में बरही,नटराज कैसेट कम्पनी (कटनी) गया हुआ था और किसी सुपर फास्ट एक्सप्रेस से रात को लगभग 1:30 बजे सक्ती स्टेशन पहुंचा।

सक्ती स्टेशन में उतरने के बाद थोड़ी सी चिंता हुई कि क्या किया जाए ?

घर चला जाए या रहने दिया जाये ..क्योंकि मेरा घर मालखरौदा, सक्ती स्टेशन से लगभग 18-20 किलोमीटर दूर है ।

जून-जुलाई का महीना यानि बारिश का मौसम ...तो चिंता भी हुई कि रास्ते में कहीं गाड़ी खराब हो गई या बारिश शुरू हो गई तो..?

उस जमाने में राजदूत चलाता था मैं और राजदूत को बिल्कुल साइकिल की तरह ही चलाता था ..मतलब पारंगत हो गया था पूरी तरह ।

कहीं गाड़ी में तकनीकी खराबी आई तो चिंता की कोई बात नहीं..क्योंकि प्लग निकालकर साफ करके फिर से लगाना मेरे बायें हाथ का खेल था.. यानि छोटा-मोटा मैकेनिक तो बन ही चुका था मैं।

तो सबसे पहले मैं गिन्नी देवी धर्मशाला में गया ..आवाज दिया.. किसी ने खोला ही नहीं।

अब मैंने सोचा कि क्यों ना घर ही चला जाए ।
जब मैं अपने घर के लिए यानि मालखरौदा के लिए निकला तो देखा कि जो रेल्वे क्रॉसिंग है..उसका फाटक बंद है।

तो जो गेट गिराने-चढ़ाने वाला रेल्वे कर्मचारी खड़ा था . उससे मैंने पूछा कि भाई अभी जाना ठीक रहेगा कि नहीं मालखरौदा ।

उसने लापरवाही से जवाब दिया कि भाई इसमें मैं क्या बता सकता हूँ।

अंततः मैंने फैसला किया कि स्टेशन में मच्छर कटवाने से अच्छा है कि घर ही निकलूँ मैं ..क्योंकि लास्ट ऑप्शन तो वही था।

अधिक से अधिक 1 घंटे की तो बात है। 1 घंटे के बाद मैं घर में ही होऊंगा ।
वैसे भी शादी को एक-दो साल ही हुए थे तो आप समझ सकते हैं ..घर पहुंचने की कितनी हड़बड़ी रही होगी मुझे।

सक्ती रेल्वे क्रॉसिंग से लगभग-लगभग दो या तीन किलोमीटर दूर है टेमर बस्ती यानि बीच में नदी और सुनसान जगह।

आजकल तो घर और दुकान बन चुके हैं रोड के दोनों तरफ यानि इतनी लाइटिंग रहती है कि कोई अन्दाज़ा भी नहीं लगा सकता कि कभी घुप्प अँधेरा भी रहता था वहाँ पर ।

टेमर तरफ आते समय नदी के दायें तरफ शमशान है..जो रात में किसी का भी धड़कन बढ़ाने के लिए काफी है।


अब टेमर के तिराहे से एक रोड अड़भाड़ की ओर जाती है और दूसरी मालखरौदा के लिए..अब मैं तिराहे से आगे मालखरौदा रूट के लिए आगे बढ़ रहा हूँ।

तिराहे से दो-तीन किलोमीटर आगे एक घुमावदार मोड़ है जहाँ पर एक आम का पेड़ है।

आजकल तो वहां से थोड़ी दूर आगे दाईं तरफ राइस मिल है।
मगर उस जमाने में टेमर बस्ती के बाद पूरा अँधेरा और सुनसान रास्ता हुआ करता था ।

ठीक मोड़ के पास आम के पेड़ के बारे में मैंने पहले से ही सुना हुआ था कि रात में वहाँ पर कुछ दिखाई देता है या दिखाई देती है।मतलब कुछ तो है वहाँ पर।

मैं बस यही सोच रहा था कि उसी मोड़ पर मुझे किसी भी प्रकार की कोई दिक्कत ना हो।

मेरे दिमाग में सिर्फ वही पेड़ था ..वही मोड़ था ..और बस उसी जगह का डर था।

अब 2:00 बज रहे होंगे लगभग-लगभग।
दिमाग में डर बैठा हुआ था । उस जमाने में मोबाईल का आगमन नहीं हुआ था। इसलिए मैं अपनी पत्नी को बता भी नहीं पा रहा था कि मैं आ रहा हूं या नहीं आ रहा हूं ।

दोनों स्थितियों में ही मैं अपनी वस्तुस्थिति से अवगत नहीं करा पा रहा था अपने घर।

यूं समझिए.. दिमाग में यही था कि हे भगवान..उस पेड़ के आसपास ही कोई घटना ना घटे।
उसके बाद तो मैं पहुंच ही जाऊंगा अपने घर।

अब क्या होता है ..जैसे ही मैं उसी आम के पेड़ वाले मोड़ पर पहुंचने ही वाला था कि.. मुश्किल से दस कदम पहले अचानक मेरी गाड़ी बंद हो गई ।
राजदूत के बंद होते ही चारों तरफ घुप्प अँधेरा।

आप महसूस कर सकते हैं मेरा डर और मेरी मानसिक स्थिति।

बारिश का दिन.. चारों तरफ बस पानी ही पानी ..लगता है दो-तीन दिनों से काफी बारिश हुई थी।

मेंढक के टर्राने और न जाने कितने ही जीव जंतुओं की अलग-अलग आवाज़ें.. डराने के लिए काफी थी।

अचानक मैंने देखा.. अंधेरे में चमकती दो आंखें ..अब कुत्ता होगा या कुछ और लेकिन डर तो डर है ..मुझे तो कोई महिला जैसी आकृति ही दिख रही थी।

..जैसा लोगों ने बताया था लेकिन महिला होती तो आँखें रोड से काफी ऊँची होती।

वह कुत्ता ही था या कुछ और पता नहीं .. लेकिन वह थोड़ी देर के बाद अचानक गायब हो गया।

एक बात गौर करने वाली ये है कि अगर कुत्ता होता तो भौंकता कम से कम और बिल्ली होती तो म्याऊँ कहती मगर ऐसा कुछ नहीं था।

मैंने बहुत हिम्मत करके अपने मन को मज़बूत बनाया।
वैसे भी, और कोई चारा न होने की स्थिति में आदमी मज़बूत हो ही जाता है।

अब आगे जाना तो संभव ही नहीं था.. तो मैंने अंततः गाड़ी को बैक किया।

कुछ दूर तक राजदूत को ढकेलते हुए आगे बढ़ा।
फिर मैंने सोचा कि क्यों ना ..एक बार स्टार्ट करके देखता हूं।

जब मैं गाड़ी को स्टार्ट किया..तो ताज्जुब ..राजदूत एक बार में ही स्टार्ट हो गया।

आगे बढ़ते-बढ़ते मेरे मन में फिर से मालखरौदा जाने का लालच आ गया।

फिर देरी किस बात की.. मैंने अपने राजदूत को घर जाने के लिए मोड़ दिया।

ठीक वहीं पर..जहां गाड़ी खराब हुई थी.. फिर बंद हो गई।

दोस्तों, मैं यह कोई कहानी नहीं बना रहा हूं ..जैसा हुआ है बिलकुल वैसा ही बता रहा हूं।
यक़ीन करिये, अनावश्यक विस्तार देने का ज़रा सा भी प्रयास नहीं है मेरा।

जितना हुआ..बस उतना ही बताने का प्रयास है क्योंकि दहशत फैलाना काम नहीं है मेरा।

फिर वही चमकती आँखें ..इस बार कुछ आकृति सा मुझे दिखाई दिया।

अब स्पष्ट नहीं कह सकता , डर के मारे ऐसा हो रहा था या सच में ..जो भी कहिए लेकिन कुछ तो सफेद साड़ी जैसा दिखा मुझे कुछ पल के लिए।

बादल गरजने के दरमियान जितना लाइट पड़ सकता है .. उसी में जो कुछ दिख सकता है ..वही दिख रहा था।

और थोड़ी देर के बाद फिर से वो चमकती आँखें गायब।

मुझे भी शायद मजा आने लगा था इस डर और रोमांच में।

सच कहूँ तो, अभी मैं बोल पा रहा हूँ कि मजा आ रहा था.. मगर उस समय ये हाल था मेरा कि मैं कैसे अपनी जान बचाऊँ।

फिलहाल गाड़ी को फिर से वापस लिया।आप यकीन नहीं करेंगे..स्टार्ट करने पर फिर से स्टार्ट हो गई मेरी गाड़ी।

इस बार मेरी हिम्मत नहीं हुई फिर से कि मैं अपने घर की ओर जाऊँ।

मुझे लगा, कुछ ना कुछ सिग्नल है जो ये कहना चाहता है कि भाई, अब आगे बढ़ना इस समय रात को ठीक नहीं क्योंकि लगभग-लगभग ढाई तो बज ही रहा होगा उस समय।

फिर मैं वापस आ गया ..रेलवे क्रॉसिंग बंद था .. फिर वही आदमी मिला मुझे रेलवे क्रॉसिंग वाला.. मुझे देखते ही बोला कि, आप भी विचित्र टाइप के आदमी हो।
क्या जरूरत थी, आपको इतनी रात को जाने का।

मैं आपको बोलना चाह रहा था लेकिन आप मानते भी तो नहीं।
मतलब,
सीधा-सीधा उसका कहना था कि भाई इस रास्ते में रात के समय तीन-चार जगह खतरनाक चीज मिलती ही मिलती है और वो भी छपोरा तक।

अभी जैसे ही मैं अंदर होऊँगा केबिन के..गाड़ी आने के सिग्नल के पहले कोई अचानक आके पूछेगा ..गाड़ी का टाइम क्या है ?? कहीं से आवाज़ आती है..बचाओ..।

इस टाइप की बहुत सी आवाज़ें आती हैं।

लेकिन जब हम बाहर निकलकर देखते हैं.. और पूछते हैं..कौन है ??
तो पता चलता है, कोई नहीं है ।
और ..ये तो हमारे हर रात का अनुभव है।

वह बस इतना ही बोला और अपने काम में व्यस्त हो गया।
इसके बाद कोई चांस ही नहीं था कहीं और जाने का।

फिर स्टेशन ही चला गया। जब स्टेशन गया तो मेरे अंदर फिर एक बार लालच आया घर जाने का।

क्योंकि टेमर तरफ से जो पुल वाली नदी बहती थी वही नदी स्टेशन तरफ से बिना पुल के नदी बहती है..खैर अब वहाँ भी पुल बन चुका है..ये भी मालखरौदा को जाती है।


शुरुआती बारिश का महीना था इसलिए अभी उतना कोई खास बारिश नहीं हुआ था ..लेकिन नदी में पानी जा रहा था ।

अभी 3:00 बजे के आसपास का समय हो रहा होगा ।
अब मैं सोचा कि अब मैं घर ही जाऊंगा और उसके बाद मैं जैसे ही अपने राजदूत को नदी की ओर उतारने लगा।

वहां पर एक आदमी मुझे मिला.. मैंने उससे पूछा कि भाई साहब पानी कितना है ??

उसे पता नहीं क्या हुआ..बिना कोई जवाब दिये ही निकल लिया।

मैंने नदी में पानी को देखा। पानी बहुत हद तक पारदर्शी था। मुझे लगा पानी का लेबल कोई खास नहीं है.. मैं पार हो जाऊंगा..।
ऐसा करना नहीं चाहिए था मुझे लेकिन ऐसा पहले भी कई बार कर चुका था ।

इसलिए मेरे अंदर अब हिम्मत आ चुकी थी ।
अब मैं अपने राजदूत को जैसे ही आगे बढ़ाया ..सामने का चक्का एकदम पानी में चला गया और मेरे अंदाज़ से कहीं ज्यादा गहरा था पानी।

अब उस ज़माने में मेरे अंदर ताकत भी थी। गाड़ी को मैंने पूरी ताकत से खींचा पीछे तरफ.. बहुत मुश्किल से भगवान की कृपा से.. ले-देके के गाड़ी पीछे हुई ।

अब तो कोई ऑप्शन ही नहीं था।
मैंने सोचा, क्यों ना स्टेशन में ही जाकर के अब एक घंटा टाइम पास करूं उसके बाद 4 - 4:30 बज जाएगा।
चहल-पहल शुरू हो जाएगी यानि लोगों का आना-जाना शुरू हो जायेगा ।

फिलहाल मैं स्टेशन गया। स्टेशन में गाड़ी खड़ा किया और उसके बाद अंदर जाकर के आराम से बैठा।

अब मच्छरों का प्रकोप शुरू हुआ। परेशान तो हुआ फिर भी.. बस यूं ही ऐसे- वैसे, इधर-उधर घूमते-घामते एक डेढ़ घंटा बीत गया।

फिर वापस मैं जब उस क्रॉसिंग के पास लगभग 5:00 बजे पहुँचा।

वह आदमी फिर मुझे मिला .वह देखते ही बोला ..भाई साहब , आप रात भर आज भटक ही रहे हो क्या।
मतलब कहीं रुके थे या रात भर बस ऐसे ही घूम रहे हो..सिर्फ इधर से उधर।

मैं बोला , आज के रात भर की सारी घटनायें मेरे समझ से ही परे हो गई हैं।

फिर उसने कुछ ऐसी बातें बताई कि रात के समय ये सारी शक्तियां जागृत हो जाती हैं ।
इन नकारात्मक शक्तियों का भी एक सिस्टम रहता है .. यहां से दिया गया सिग्नल थोड़ी दूर के किसी मोड़ अथवा किसी भी नकारात्मक जगह की शक्तियों को मिल जाता है।

आप रात में जिस मोड़ पर फंसे थे यानि आपकी गाड़ी बंद हुई थी ..वो जगह सचमुच खतरनाक है।

सबसे बड़ी बात ..जिस टाइम में आप गुजर रहे थे वहाँ से..वो टाइम ही गलत था।

उसका तो कहना था कि यह सिलसिला यहीं क्रासिंग से ही चालू हो जाता है।

रेलवे क्रॉसिंग से जस्ट थोड़ा दूर है (आजकल पेट्रोल पंप,जो पहले नहीं था) वहां पर भी कुछ-कुछ ऐसा ही है।

अब धीरे-धीरे लाइटिंग वगैरह ज्यादा हो गया है।
ट्रांसफार्मर में भी वोल्टेज का सप्लाई इतना नहीं था जिसकी वजह से एक प्रकार से अंधेरा था तो ऐसी नकारात्मक शक्तियाँ ज्यादा प्रभावी थीं !!
मगर आज उजाले हिम्मत भी देते हैं और ऐसी शक्तियाँ कमजोर भी पड़ती हैं संभवत:।

फिलहाल घर पहुंच गया सुबह सात बजे तक।
घर पहुंचा तो बताया ये सारी घटना मैं अपनी श्रीमती जी को.. तो उन्होंने मुझे बहुत डांटा कि आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था।

रेल्वे क्रासिंग वाले भाई साहब ने एक विशेष बात कही थी कि ..जहाँ तक सम्भव हो..ऐसा दुस्साहस खासकर रात को कभी भी नहीं करनी चाहिए।

इस घटना पर आपका अगर कोई सलाह हो या कोई विचार हो तो आप जरूर बताइयेगा !
बहुत-बहुत नमस्कार धन्यवाद !!

लेखक : वेदव्यास मिश्र


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Isake bare m pramanikta ke sath kuch nahi kaha ja sakta yadhyapi aisey bahut se anubhav mene khud ke sath kiye hain fir bhi unko yadi sajha Kiya Jaye to koi manane ko taiyar nahi hota ki Aisa sambhav bhi hoga. Lekin mere sath aisey 4-5 anubhav huye Hain to aapke sath ghatit is ghatna ko nakara nahi ja sakta ... Waqt Milne par koshish karunga ki apne anubhav sajha kar paun... Jiwan me nakartmkta se bachne ka ek Matra upay jo practically Maine mahsus kiya hai wo hai positivity aap apne andar itani positivity rakhiye ki nakaratmkta ya negativity aapko harm na kar paaye...

वेदव्यास मिश्र replied

बिलकुल सही कहा आपने पचौरी जी !! ऐसी घटनायें घटती तो हैं मगर इसका सी सी कैमरा हिडेन होता है कहीं पर !! बस कुछ अनुभव सा होता है जो सामान्य नहीं है संभवत: !! ये सचमुच घटित हुआ है और आज जब कभी भी उस जगह से गुजरता हूँ..तो पूरा का पूरा दृश्य मेरे सामने से गुजर जाता है !! आपने जिक्र किया है कि आपके साथ भी कुछ ऐसा ही असामान्य घटनायें हुई हैं..हमें बेसब्री से इन्तज़ार है ..जानने का 🙏🙏 नमस्कार सुप्रभात !!

रीना कुमारी प्रजापत said

Ham to apko yahi salah dete hai ki aap itni raat ko kahi Aaya ya jaya na kare kyonki nakaratmak shaktiyon ki hi baat nhi kuch or bhi ghatnaye ghat sakti hai

वेदव्यास मिश्र replied

बिलकुल सही कहा आपने रीना जी 🙏🙏 आजकल सचमुच कुछ और भी घटनायें घट सकती हैं । आपकी प्रतिक्रिया मिली..मैं बिलकुल आपकी सलाह पर अमल करूँगा । आभार नमन उपस्थिति बनाये रखने के लिए !!

आत्माराम जानकी said

Bahut Achhe dhang se vyakt kiya hai aapne is sansmaran ko

वेदव्यास मिश्र replied

आत्माराम जानकी जी, आपने अपना कीमती समय दिया इस संस्मरण को 🙏🙏 इसके लिए बहुत-बहुत साथुवाद नमन 💜💜

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