वो लम्हे जो अक्सर देखे गये
आज़ भी मिल जाते कहीं
मैं फिर से जी लेता कहीं न कहीं
एक बार फिर से जी लेने का,
ग़म तो है ही कहीं न कहीं
बता नहीं सकते,छुपे हुए हैं कहीं न कहीं।
कम्बक्त दिल उसका सताया हुआ है
वो याद आती है, उसका चेहरा भी याद है
उसकी कही हर बात याद है,
उसके साथ बिताए हर पल याद है
वो यूं गयी मुझे छोड़ कर,
जैसे जान जाती शरीर छोड़ कर।
वो लम्हे जो अक्सर देखे गए
आज भी मिल जाते कहीं।
मनोज कुमार पचौरी