आज फुरसद है
चलो आज कलम से मिले है
पूछे उसे तूँ कैसी है !!
अल्फ़ाज़ की आज बरखा है
कागज़ को भीगना है
तर्कों का आया जो तूफ़ां है !!
अरसा बित गया है
लिखना छूट गया है
आज जाकर मौक़ा लाया है !!
दर्द थोड़ा सा कम है
उसे ग़म से थोड़ी रुख़सत है
चलो फिर सौंधी खुशबू लेते है !!
युगो से आविष्कार वाणी का है
लय राग का मौसम खिला है
संगीत की यारी को लिपट जाते है !!
आई हवा की ठंडी लहर है
मुक्त जीने में मज़ा ही मज़ा है
चलो फिर से बच्चे बन जी लेते है !!