सूखे पत्तों का आक्रंद सुना
गमगीन ये भावुक मन रो पड़ा
आख़िर क्यों, ये प्रकृति ने उसे छोड़ा
बड़ी चाव से उसने ही था उसे पाला......
कौन सा गुनाह हुआ उससे,
सवालों का सिलसिला शुरू हुआ
वो बिलखता रहा, पर उसकी धरोहर ने
उसे ऐसा फेंका वो लुप्त हो गया......
हम बेजुबान बने उसे निहारते रहे
सोंचा, ऐसा हाल कल हमारा भी होगा
फिर क्यों, ये पागल ख़्याल ऐसे भांगे
जैसे वो यहां 'अमर' बन कायम रहेगा.......