न जाने क्यूँ हर ख़्वाब पूरा होते-होते रह गया
संभाला जज़्बात मगर आँखों से आँसू बह गया
अधूरी रह गई ख़्वाहिश हमारे आशियाने की
बनाया क्यूंँ महल रेत पर देखो कैसे ढ़ह गया
मुकर्रर था जहांँ मिलना अब भी वहीं हैं हम
कभी न वो आएगा सरगोशी से कोई कह गया
वफ़ा के बदले हर जगह मुझको मिली बेवफ़ाई
मलाल था पर लब सिले रहे सबकुछ दिल सह गया