कोई मरणासन्न अवस्था में भी
मृत्यु के आखरी द्वार पर भी
अपना राग
अपना मोह
अपना अहंकार
अपने अज्ञान को नहीं छोड़ता
हे भगवंत...
तब आश्चर्य होता है।
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|
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कोई मरणासन्न अवस्था में भी
मृत्यु के आखरी द्वार पर भी
अपना राग
अपना मोह
अपना अहंकार
अपने अज्ञान को नहीं छोड़ता
हे भगवंत...
तब आश्चर्य होता है।
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️