ऐ ज़िन्दगी!
अब तो थोड़ा रहम कर
इम्तिहान लेना अब खत्म कर..
अब तो उम्र ने भी कमर झुका दी
कदम उठ पाते नहीं
आँखों को बादलों ने घेर लिया
मन ने भी हौसला छोड़ दिया
अपनों का साथ साथ न रहा
इम्तिहान लेना अब खत्म कर दे ..
अब तो न तन सलामत बचा
न मन में कोई आरज़ू ही बची
जो गाँठें उम्र भर समेटी थी अब तो वो भी खुल गईं
यादों ने याद आना छोड़ दिया
अपनों के नाम भी अब ज़हन से मिटने लगे
ऐ ज़िन्दगी!
अब तो थोड़ा रहम कर
गिले शिकवे भूल कर
इम्तिहान लेना अब खत्म कर ..
वन्दना सूद
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