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कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

तन्हाई

Jul 06, 2024 | संस्मरण | स्नेह धारा  |  👁 784,457


ये तन्हाई आती है
चुप के से वो कुछ कहती हैं
हो अकेले तो मैं तेरी साथी हूं
हलचल सी हूं.. मैं चंचल सी हूं
तुझमें समा कर तेरा ख़्याल पूछती हूं
छेड़ो न ग़म का तराना
मैं भी तो डर जाती हूं
ये तन्हाई आती है
हद से ज्यादा सताती हैं
जीना कहां फिर आता है....

दर्द को झेला है अश्रु को पीया हैं
वेदना से पुराना नाता हैं
फिर भी खा जाती तन्हां बीमारी है
दुआ न कोई असर करे
खुदाई हमसे रूठी हैं
ये तन्हाई आती है
हद से ज्यादा सताती हैं
जीना कहां फिर आता है....

बेहद तड़पते आरजू के पैमाने है
न कोई नशा है न शराब है
फिर भी बेहोशी का आलम है
ये तन्हाई कहती है.....
क्यों मारी मारी तूं मुझसे खफ़ा रहती है
हद से ज्यादा सताती हैं
जीना कहां फिर आता है....
ये तन्हाई आती है.....!!!!




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (6)

+

Bhushan Saahu said

Bilkul sach kha...akelepan m jina bahut muskil h.

स्नेह धारा replied

Thanks

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut sundar likha Mam, 🙏🙏 Pranam sweekar karein

स्नेह धारा replied

Pranam 🙏 Thanks

कमलकांत घिरी said

अहा क्या खूब लिखा मैम, तन्हाई एक न एक दिन तो आती ही है और सताती भी है... बहुत सुंदर रचना🙌👏।।प्रणाम।।

स्नेह धारा replied

प्रणाम Thanks

वन्दना सूद said

Bahut badiya dil ki awaaz 👏👏👌👌

स्नेह धारा replied

Thanks

Shyam Kumar said

Sahi kha tanhai m jine se to dar hi lgta h. Mujhe to aas pas bht se log chahy hote hain tb sukun aata h.

स्नेह धारा replied

👏 Thanks

Kapil Kumar said

तन्हाइयों की तो मंजर ही अलग है ना तो सांस आती है ना सांस जाती है मैंने अनुभव किया है

स्नेह धारा replied

Thanks😒

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