आओ, नारात्मक हो जाएँ हम,
झूठी आशाओं के मोह से छूटें हम।
परतंत्र है ये देश, जिसकी
स्वतंत्रता का जश्न मनाते हम।
देश-देश गाते-गाते, अपने
घर के मोह के गुलाम हम।
ठेकेदार, नौकरशाह और
मंत्री खेलते कमीशन का खेल,
देश निर्माण को कमजोर करते हम।
मुट्ठी भर मुफ्त अनाज की चाह
में निकम्मे, बेकार, आलसी हम।
देश की संपत्ति बेचते, देश के नाम
निर्लज्जता से खरीदते हम।
सिर्फ अपने दल, अपने घर,
अपने धर्म की संकीर्णता में बंधे हम।
अपने घर का कूड़ा, देश की
सड़कों पर फैलाते फिरते हम।
कुछ नहीं, बस एक रस्म निभाते हैं,
जोर-जोर से चिल्लाते हैं, “देशभक्त हैं हम!”
मुफ्तखोरी के सपने दिखाते
नेताओं, नौकरशाहों, ठेकेदारों
की इच्छाओं के दरशक हम।
सुख-सुविधाओं की खातिर
करते देश सेवा, बस ऐसे देशभक्त हम।
कर्ज की गहरी दलदल में
प्रतिपल डूबता हुआ देश,
कितना बचाने को तैयार हम?
अपने घर के लिए लूटते देश
की संपत्ति, कहते हैं, “देशभक्त हैं हम!”
समूहों में जीते-पलते हम,
बातें देश की करते हम।
क्या देश की आजादी की बात
करेंगे, अपने मोह से ग्रस्त हम?
आओ, प्रण करें, देश से बड़े नहीं
होंगे हम।
देश से लेंगे नहीं, सर्वस्व देंगे हम।
मुफ्तखोरी छोड़ मेहनत करेंगे हम।
मुफ्तखोर नेताओं की सुविधाओं,
नौकरशाहों की लालसाओं,
अमीरों की इच्छाओं पर नहीं
होने देंगे देश बर्बाद हम।
अन्धविश्वाश के पाश को
तर्क के प्रकाश से जलाएंगे हम ।
देश को स्वच्छ, आत्म निर्भर कर,
अपने घर स सजायेंगे हम ।
संकीर्णता और साम्प्रदायिकता
को छोड़ देश को अपना धर्म और
कर्म बनायेंगे हम ।
देश की इस फुलवारी को
नफरत की आग से बचायेगे हम ।
घर की खातिर, मन की खातिर नहीं,
देश की खातिर जियेंगे हम ।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




