
पापा और मम्मी दोनों ने फोन में पूछा - बिटिया,
कैसी चल रही है तुम्हारी तैयारी !!
कैसा लग रहा है जगह ..कोई दिक्कत तो नहीं है न बेटी ??
नेहा कुछ उखड़ी-उखड़ी ज़रूर थी..मगर अपनी परेशानी छुपाते हुए बस इतना ही बोली - कोई दिक्कत नहीं है पापा..
सब ठीक है !!
पापा ने फिर से पूछा - कैसे बेटी..तेरी आवाज से ऐसा क्यूँ लग रहा है कि कुछ छुपा रही है हमसे !
नेहा ने कहा- नहीं पापा..थोड़ी तबियत ठीक नहीं है बस !
और कोई बात नहीं है..
अच्छा पापा.. !!
अगर मेरा सेलेक्शन नहीं हुआ तो आप लोग नाराज़ तो नहीं होंगे न मुझ पर ??
ऐसा क्यों बोल रही है बेटी !
हम भला क्यों नाराज़ होंगे !
हमारी तो मार्कशीट ही तू है..फिर हमें किसी और मार्कशीट की भला क्या ज़रूरत !!
निराश मत होना हमारी प्यारी बेटी !!
जो भी समस्या होगी..
हमसे शेयर ज़रूर करना !!
अगर पी.एम.टी. फाइड नहीं कर पाई तो कोई बात नहीं !!
नहीं होगा तो नहीं होगा..उसमें क्या है..फिर से तैयारी करना !
अच्छा बेटी, ये तो बता !
आख़िर तू ऐसा बोल क्यों रही है ??
किसी टीचर ने कुछ कहा या किसी सहेली ने या कोई और बात है ??
बता....मैं तेरा पापा हूँ..तू ही हमारी इकलौती संतान है..तू हमारी जान है हमारी प्यारी बेटी !
अगर मन नहीं लग रहा है तो छोड़ कोटा..
तू यहीं आ जा अपने शहर बिलासपुर में !!
नहीं पापा..लोग क्या कहेंगे ??
नेहा ने कहा । नाते-रिश्तेदार सभी मुझे ताना मारेंगे और आप लोगों को भी !!
बेटा ; लोगों की छोड़ !
तू अपना देख और हमारा देख !!
हमें कोई दिक्कत नहीं है !
तू यहाँ पढ़ या वहाँ पढ़ !..पापा-मम्मी दोनों ने ही एक साथ समझाते हुए अपनी बिटिया को कहा ।
नहीं पापा..अभी हार नहीं मानूँगी मैं !
अगर मुझे अच्छा नहीं लगा तो वापस जरूर आ जाऊँगी मगर अभी तो फिलहाल बिलकुल भी नहीं !
आप लोग मेरी.. बिलकुल भी चिन्ता न करें !
हो सकता है अभी नई-नई हूँ यहाँ इसलिए शायद एडजस्ट होने में टाइम लग रहा है !!
मगर मैं एडजस्ट हो जाऊँगी !
पापा, अभी फोन रखती हूँ मैं
कोचिंग जाना है मुझे.. मैं बाद में बात करती हूँ आप लोगों से !
इतना कहकर नेहा ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया !
आगे पढ़ें - साॅरी मम्मी..साॅरी पापा !! - अध्याय - ३ - इन्सपेक्टर सिंह बोल रहा हूँ.. - वेदव्यास मिश्र
लेखक : वेदव्यास मिश्र
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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