जहां तक नज़र पड़े
वहां जाकर ही रुके
हाय रे ए क्या वहां शून्य दिखे
क्षितिज के उस पार
क्या कोई जहां बसे ?
न कोई आधार न प्रमाण
फिर भी कोई हैं वहां ऐसा लगे
पर्वतो की चोटी पे क्या
आसानी से कोई पहुंचे ?
अगर ऐसा हो तो वादियां है कैसी
प्रत्यक्ष रूप क्यों कभी न दिखें ?
मन भागे बेकरार होकर
चिंतन चिंता और कल्पना लेके
दिव्य सपने लाखों देखे
काश के वो सच होते तो...!..!..!
वर्तमान में 'सफ़लता' से जीते