मैं करीब 11 वर्ष का था जब अपने चचेरे भाई के परिवार सहित अमावस्या पर गंगा स्नान के लिए
गढ़ मुक़तेश्वर ब्रज घाट पर गया था.
गंगास्नान के दौरान अचानक मेरा पैर फिसला और सम्भलने से पहले ही मैं धार बह चला. परिवार तथा अन्य लोग मदद के लिए चिल्ला रहे थे और मैं तीव्र गति से गंगा के अथाह मध्य प्रवाह में सूखे पत्ते की तरह बह रहा था.
इसी तरह बहते हुए लगभग 10 मिनट के उपरांत मेरे चारों और मद्धिम पीला सा सम्मोहित करता दिव्य प्रकाश फ़ैल गया और मुझे यह ज्ञान ही नहीं था कि मैं जल में बह रहा हूँ परन्तु वैसे मुझे पूरा पूरा होश था. उस दिव्य समय में मुझे अपना नाम, अपना परिवार, माता पिता, भाई बहनों ,शत्रु ,मित्र ,दिन रात ,गर्मी सर्दी, अपने शरीर, आत्मा, समय, अच्छा बुरा आदि का कोई भान नहीं था.
चारो और फैला दिव्य हल्का पीलाप्रकाश मुझे सम्मोहित कर रहाथा. उस समय ना तो जीवन का मोह था न ही मृत्यु का डर था.
एक असीम सम्मोहक दिव्य शान्ति के वृत्त में बिंदु की तरह मैं स्थिर हो गया था लगता था साधना की
समाधि में सप्राण सचेत स्थिर हो गया था. तभी सहसा एक झटका सा लगा और किसी ने मुझे खींच लिया.
तट रक्षक नौका के दल ने मुझे मेरे बहने के स्थान से लगभग 10 किलोमीटर दूर देखकर नाव में उठा लिया था. मैं पूरे होशो हवास मैं बिल्कुल ठीकठाक स्वस्थ था.
लेकिन उस जल समाधि की असीम शान्ति दिव्य प्रकाश और गहन आत्म अनुभूति मुझे आज तक रह रह कर लुभाती रहती है. जब कभी भी में ध्यान करता हूं तो कभी कभार उस दिव्य प्रकाश की हलकी झलक पल के लिए मिलती है चली जाती है. मुझे आज भी उसकी तलाश है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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