अमीरी तो गाँव में है
हम एक सफ़र पर निकले
सफ़र कुछ ४ घंटे का था
हमारी कार किसी कस्बे,गाँव,तालुका,शहर से होकर गुज़री
हर स्थान में कुछ न कुछ नयापन दिखा
हर स्थान का रहन-सहन,खान-पान सब में कुछ नयापन मिला
ये कहना सही होगा कि
आज वास्तविक अमीरी तो गाँव और छोटी जगहों पर ही रह गई है
शुद्ध हवा,स्वच्छ पानी,स्वादिष्ट खान-पान सब उनके पास है
छल-कपट से दूर अपनेपन का भाव लिए दिल के नवाब हैं वो
स्पष्ट मिज़ाज लिए अपनी ज़िन्दगी में मस्त रहते हैं
बेशक हाथ में पैसा भरपूर न हो
तन पर बेशक कपड़ा हल्का पहना हो
पर मन से आज भी अपनी संस्कृति को अपने में समेटे हुए हैं
शहर वाले जिनके पास धन के साथ सुविधा भी हैं
जो अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने में बड़ा योगदान दे सकते हैं
वो अपने दिखावे से ही बाहर नहीं निकल पाते
कितने दुःख की बात है
जिन्हें गाँव वाले बोल कर हम कई बार नीचा महसूस करवाते हैं
उन्होंने ही हमारे देश की संस्कृति को संजो कर रखा है
वास्तव में हमें न्यूनता स्वीकार करनी चाहिए ,जो योग्य होते हुए भी आधुनिकता की चाह में हवा,पानी,अन्न सब अशुद्ध ले रहे हैं ..
वन्दना सूद