हम कितने दिन जिएंगे
चलो हर दिन यादगार बनाते है
भले कोई रूठा रहे हमसे
बिना मनाएं खुशियां बांटते हैं
हर लम्हां शान से जी कर
करूणा और दर्द को हराते है
मायूसी आहे भरे तो क्या करें
लापरवाह होकर खुश रहते हैं
जमाने को जाना और समझा
वो हर दिन नया पाठ सिखाता है
मौत की सैयामें जब हम सोएंगे
कौन भला फिर याद रखता है
प्रयाण लंबा रुकना केवल तन का
आख़री प्रयाण तो आत्मा का है
गुमशुदा क्यों रहे, वक्त जा रहा
पंख पकड़ उसके बस हंसना है
कितने दिन ओर जिएंगे
चलो हर दिन यादगार बनाते है
यादों का गुलदस्ता ज़माने को देकर
थोड़ी महक भीतर भरना सिख लेते है